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Tag: माथे की बिंदिया

कविता

एक विरहणी के अंगो का हाल

June 20, 2018 / June 20, 2018 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment

आर के रस्तोगी    मस्तिष्क अब घूम रहा है, हर तरफ तुझ को ढूंढ रहा है क्यों ये चक्कर  काट रहा है ,तेरे से क्या ये मांग रहा है आँखे भी अब बरस रही है,तेरे दर्शन को तरस रही है पलके भी अब भीग रही है,तेरे रूमाल को तरस रही है गेसू भी ये बिखरे […]

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“आँखे एक विरहणी के अंगो का हाल गोरे गाल लाल दांत भी सर्दी माथे की बिंदिया
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