कविता मानवता के स्वप्न अब तक अधूरे हैं February 4, 2014 / February 5, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -विजय कुमार- स्वप्न मेरे, अब तक वो अधूरे हैं; जो मानव के रूप में मैंने देखे हैं ! मानवता के उन्हीं स्वप्नों की आहुति पर आज विश्व सारा; एक प्राणरहित खंडहर बन खड़ा है ! आज मानवता एक नए युग-मानव का आह्वान करती है; क्योंकि, आदिम-मानव के उन अधूरे स्वप्नों को, इस नए युग-मानव […] Read more » poem मानवता के स्वप्न अब तक अधूरे हैं