कविता भव्य भव की गुहा में खेला किए, September 15, 2018 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment (मधुगीति १८०८०८ अ) भव्य भव की गुहा में खेला किए, दिव्य संदेश सतत पाया किए; व्याप्ति विस्तार हृदय देखा किए, तृप्ति की तरंगों में विभु भाए ! शरीर मन के परे जब धाए, आत्म आयाम सामने आए; समर्पण परम आत्म जब कीन्हे, मुरारी मुग्ध भाव लखि लीन्हे ! झाँकना परा मन से जब आया, जगत […] Read more » झरने भव्य भव मुरारी मुग्ध संस्कार
कविता भव्य भव की गुहा में खेला किए ! September 3, 2018 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment गोपाल बघेल ‘मधु’ भव्य भव की गुहा में खेला किए, दिव्य संदेश सतत पाया किए; व्याप्ति विस्तार हृदय देखा किए, तृप्ति की तरंगों में विभु भाए ! शरीर मन के परे जब धाए, आत्म आयाम सामने आए; समर्पण परम आत्म जब कीन्हे, मुरारी मुग्ध भाव लखि लीन्हे ! झाँकना परा मन से जब आया, […] Read more » भव्य भव की गुहा में खेला किए ! मुरारी मुग्ध समर्पण परम