कविता
मैंने ज़िंदगी से कुछ सीखा है
/ by चरखा फिचर्स
मनीषा छिम्पालूणकरणसर, राजस्थानकुछ कहना था, पर चुप ही रहती हूँ,कुछ दबी सी ख्वाहिशें, दबे ही रहने देती हूँ,कुछ बेताबी हैं आज फिर कहीं इस दिल में,आज इस बेताबी को फिर से जीने देती हूँ,चलो आज भी मैं अपनी ज़रूरतें पूरी कर लूँ,और ख्वाहिशें फिर अधूरी ही रहने देती हूँ,मैं औरों की तरह बन नहीं सकती […]
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