कविता रक्स करतीं थालियां June 24, 2013 by डा.राज सक्सेना | Leave a Comment डा. राज सक्सेना पी सुरा को मस्त होकर, मस्त फिरतीं प्यालियां | बैंगनों के घर में गिंरवीं, रक्स करतीं थालियां | कौरवों की भीड़, आंखें बन्द कर चलती मिली, नग्नतम् सड़कों पे खुलकर, चल रहीं पांचालियां | एक अच्छी व्यंग्य कविता,को समझ पाए न लोग, एक हज़ल पर देर तक, बजती रही थीं तालियां | […] Read more » रक्स करतीं थालियां