कविता रस लो प्रिये इस जगत में! November 11, 2020 / November 11, 2020 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment रस लो प्रिये इस जगत में,रह तटस्थित अवतरण में;सब चल रहे मग प्रकृति में,उस पुरुष की ही देह में! रीते कहाँ वे हैं बसे,वे ही लसे वे ही रसे;उर में वे ही नर्तन किए,वे कीर्तन लेते हिये! वे ही परे जाते कभी,वे ही उरे आते कभी;चलवा वे ही हमको रहे,जाने की वे कब कह रहे! […] Read more » रस लो प्रिये इस जगत में!