कविता वाणिनी January 24, 2024 / January 24, 2024 by श्लोक कुमार | Leave a Comment कुछ ताख की मजबूरीतो, कुछ लाख की मजबूरीकुछ छड़ और खनक जाकुछ पल और सह ले तू इन रोब के उष्णता कोसुन ले ए नृत्यकार , कुछ न कहना रहजा सहन कर संसार के आहट कोसमाज के स्वरों की गूंजे गिनातीमेरी समय को ,के देख यही बिसात तेरीके तू लाख कर ले प्रयत्नरहेगी एक साख […] Read more » वाणिनी