कविता शांत झील —- March 23, 2013 / March 23, 2013 by प्रवीण गुगनानी | Leave a Comment उस शांत झील को जब देखा था निर्झर तब वह नदी होकर कहीं कलकल बह निकलनें के प्रयास में थी। उन पहाड़ी सीमाओं में नदी उकता गई थी। आस पास खड़े सभी ऊँचें चीढ़ और देवदार उसकी इक्छाओं को देते रहते थे आकार और उठाये रहते थे उन्हें अपने ऊपर बिना अनथक। वे अनथक ऊँचें […] Read more » शांत झील