व्यंग्य संती-महंती का ठेला, मेला ही मेला November 22, 2014 by अशोक गौतम | 1 Comment on संती-महंती का ठेला, मेला ही मेला अशोक गौतम थका हारा ठेले के डंडे में बुझी लालटेन लटकाए किलो के बदले साढ़े सात सौ ग्राम सड़ी गोभी तोल रहा था कि एकाएक कहीं से प्रगट हुए बाबा ने मुझसे पूछा, ‘ सब्जी के ठेले पर किलो के बदले सात सौ ग्राम तोल अपना ये लोक तो ये लोक,परलोक तक क्यों खराब कर […] Read more » व्यंग्य/ संती-महंती का ठेला संती-महंती संती-महंती का ठेला