कविता चुनाव राजनीति सबकी अपनी चाल April 12, 2014 by हिमकर श्याम | Leave a Comment -हिमकर श्याम- आफ़त में है ज़िन्दगी, उलझे हैं हालात। कैसा यह जनतंत्र है, जहां न जन की बात।। नेता जी हैं मौज में, जनता भूखी सोय। झूठे वादे सब करें, कष्ट हरे ना कोय।। हंसी-ठिठोली है कहीं, कहीं बहे है नीर। महंगाई की मार से, टूट रहा है धीर।। मौसम देख चुनाव का, उमड़ा जन […] Read more » satiric poem on election सबकी अपनी चाल