दोहे विविधा स्मित नयन विस्मृत बदन ! July 14, 2015 / July 14, 2015 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment स्मित नयन विस्मृत बदन, हैं तरंगित जसुमति-सुवन; हिय स्फुरण हलकी चुभन, हैं गोपियां गति में गहन । हुलसित हृदय मन स्मरत, राधा रहति प्रिय विस्मरित; आकुल अमित झंकृत सतत, वन वेणुका खोजत रहत । सुर पाति संवित गति लभति, हर पुष्प केशव कूँ लखति; हर लता तन्तुन बात करि, पूछत कुशल हर पल रहति । […] Read more » स्मित नयन विस्मृत बदन !