व्यंग्य केले.. ले लो, संतरे.. ले लो! May 30, 2015 / May 30, 2015 by अशोक गौतम | Leave a Comment -अशोक गौतम- वह इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक का मजनू फिर अपनी प्रेमिका के कूचे से आहत हो आते ही मेरे गले लग फूट- फूट कर रोता हुए बोला,‘ दोस्त! मैं इस गली से ऊब गया हूं। इस गली में मेरा अब कोई नहीं। मैं बस अब आत्महत्या करना चाहता हूं। बिना दर्द का कोई […] Read more » केले.. ले लो व्यंग्य संतरे.. ले लो! हास्य. featured