कविता हे पार्थ ! April 14, 2014 / April 14, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | 1 Comment on हे पार्थ ! -दीप्ति शर्मा- हे पार्थ ! मैं सिंहासन पर बैठा अपने धर्म और कर्म से अंधा मनुष्य, मैं धृतराष्ट्र देखता रहा, सुनता रहा और द्रोपती के चीरहरण में सभ्यता, संस्कृति तार तार हुयी धर्म के सारे अध्याय बंद हुए , तब मैं बोला धर्म के विरुद्ध जब मैं अंधा था पर आज आँखें होते हुए भी […] Read more » poem on Mahabharat हे पार्थ !