कविता
नैनों की भाषा
/ by अजय एहसास
मूक रहो कुछ ना बोलो, तब भी सब समझ ही जाते है हम नही समझते है कुछ भी, ये सोच के सब इठलाते है जब होंठ हो चुप और नैन मिले, ये प्रेम की इक परिभाषा है हिन्दी,अंग्रेजी,उर्दू नही , कहते इसे नैनों की भाषा है। हो मेला,बजार,परिवार कहीं, नैनों से बात कर लेते है […]
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