नैनों की भाषा

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मूक रहो कुछ ना बोलो, तब भी सब समझ ही जाते है
हम नही समझते है कुछ भी, ये सोच के सब इठलाते है
जब होंठ हो चुप और नैन मिले, ये प्रेम की इक परिभाषा है
हिन्दी,अंग्रेजी,उर्दू नही , कहते इसे नैनों की भाषा है।

हो मेला,बजार,परिवार कहीं, नैनों से बात कर लेते है
बस ताक झांक कर नैनों में, दिल की किताब पढ़ लेते है
लगता है दृष्टि देख उनकी, अब और न कोई आशा है
हिन्दी,अंग्रेजी,उर्दू नही , कहते इसे नैनों की भाषा है।

पुतली को दायें बनायें कर, कुछ पाठ पढ़ाने लगते है
भौहों को ऊपर नीचे कर, कोई बात बताने लगते है
शुरूआत हुई इन आंखों से,इन आंखों ने ही फांसा है
हिन्दी,अंग्रेजी,उर्दू नही , कहते इसे नैनों की भाषा है।

आंखों से जब आंखें मिलती, दिल की धड़कन बढ़ जाती है
जो बातें कहने लायक ना, आंखें उसको कह जाती है
उम्मीद की किरणें जगती है, आंखों मे कभी निराशा है
हिन्दी,अंग्रेजी,उर्दू नही , कहते इसे नैनों की भाषा है।

ये प्रथम बार जब मिलते है,तो दिल के बगिया खिलते है
इस दूजे में खो जाती है,मखमल ख्वाबों के सिलते है
अन्तर्मन गदगद हो जाता,नैंनों ने फेंका पासा है
हिन्दी,अंग्रेजी,उर्दू नही , कहते इसे नैनों की भाषा है।

पलकें जो झुकी तो शरमाना, पलकें जो उठीं तो मुस्काना
नैनों के पथ पर चल राही, और उनके दिल में उतर जाना
नैनों की भाषा समझोगे, ‘एहसास’की तुमसे आशा है
हिन्दी,अंग्रेजी,उर्दू नही , कहते इसे नैनों की भाषा है।

        - अजय एहसास
    सुलेमपुर परसावां

अम्बेडकर नगर (उ०प्र०)

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