कविता गीत ; आई नदी घर्रात जाये – प्रभुदयाल श्रीवास्तव April 29, 2012 / April 30, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment प्रभुदयाल श्रीवास्तव आई नदी घर्रात जाये मझधारे में हाथी डुब्बन कूलों कूलों पुक्खन पुक्खन कीट जमा सीढ़ी पर ऐसा जैसे हो मटमैला मक्खन डूबे घाट घटोई बाबा मन मंदिर के भीतर धावा हुई क्रोध में पानी पानी उगले धुँआं सा लावा उसनींदी बर्रात जाये आई नदी घर्रात जाये| बजरे और शिकारे खोये चप्पू पाल डांड़ […] Read more » geet आई नदी घर्रात जाये गीत गीत
कविता गीत ; सड़ी डुकरियां ले गये चोर – प्रभुदयाल श्रीवास्तव April 29, 2012 / April 30, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | 7 Comments on गीत ; सड़ी डुकरियां ले गये चोर – प्रभुदयाल श्रीवास्तव प्रभुदयाल श्रीवास्तव इसी बात का का होता शोर सड़ी डुकरियां ले गये चोर| रजत पटल पर रंग सुनहरे करें आंकड़े बाजी बजा बजा डुगडुगी मदारी चिल्लाये आजादी भरी दुपहरिया जैसे ही वह रात रात चिल्लाया सभी जमूरों ने सहमति में ऊंचा हाथ उठाया उसी तरफ सबने ली करवट बैठा ऊंट जहां जिस ओर| सड़ी […] Read more » geet गीत सड़ी डुकरियां ले गये चोर गीत
साहित्य गीत ; चट्टू हो गई जीभ – प्रभुदयाल श्रीवास्तव April 28, 2012 / April 28, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment प्रभुदयाल श्रीवास्तव चट्टू हो गई जीभ जलेबी कौन खिलाये चस्का लगा मलाई बर्फी लड्डू रसगुल्ला एक इशारे पर पहुँचा देता कोई दुमछल्ला री मैया संपूर्ण उमरिया यूं ही कट जाये चट्टू हो गई जीभ जलेबी कौन खिलाये| आसमान से उड़े परिंदे धरती पर आते तृष्णाओं के मकड़ जाल में स्वयं ही फँस जाते […] Read more » geet गीत चट्टू हो गई जीभ गीत
साहित्य गीत ; कितना लोकलुभावन होता – प्रभुदयाल श्रीवास्तव April 27, 2012 / April 27, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | 3 Comments on गीत ; कितना लोकलुभावन होता – प्रभुदयाल श्रीवास्तव प्रभुदयाल श्रीवास्तव कितना लोक लुभावन होता था गिल्ली डंडे का खेल| पिलु बनाकर छोटी सी उसमें गिल्ली को रखते चारों ओर खिलाड़ी बच्चे हँसते और फुदकते हाथ उठाकर डंडे से फिर गिल्ली को उचकाते बड़ी जोर से ताकत भर कर टुल्ला एक जमाते दूर उचकती जाती गिल्ली उसको लेते बच्चे झेल| कितना लोक लुभावन […] Read more » geet कितना लोकलुभावन होता गीत गीत