कविता उड़े छतों से कपड़े लत्ते October 3, 2020 / October 3, 2020 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment आये शाम को आज अचानक,काले- काले बदल नभ में। बूँद पड़ी तो बुद्धू मेंढक,मिट्टी के भीतर से झाँका।ओला गिरा एक सिर पर तो,जोरों से टर्राकर भागा।तभी मेंढकी उचकी, बोली,ओले करें इकट्ठे टब में। आवारा काले मेघों ने,धूम धड़ाका शोर मचाया।चमकी बिजली तो वन सारा,स्वर्ण नीर में मचल नहाया।बूढ़ा बरगद लगा नाचनेंजो अब तक था खड़ा […] Read more » Hanging clothes from rooftops उड़े छतों से कपड़े लत्ते