उड़े छतों से कपड़े लत्ते

आये शाम को आज अचानक,
काले- काले बदल नभ में।

बूँद पड़ी तो बुद्धू मेंढक,
मिट्टी के भीतर से झाँका।
ओला गिरा एक सिर पर तो,
जोरों से टर्राकर भागा।
तभी मेंढकी उचकी, बोली,
ओले करें इकट्ठे टब में।

आवारा काले मेघों ने,
धूम धड़ाका शोर मचाया।
चमकी बिजली तो वन सारा,
स्वर्ण नीर में मचल नहाया।
बूढ़ा बरगद लगा नाचनें
जो अब तक था खड़ा अदब में।

आंधी भी चल पड़ी साथ में,
लिए घास के तिनके पत्ते।
मम्मी पहुँचे- पहुँचे जब तक,
उड़े छतों से कपड़े लत्ते,
नहीं एक भी मिले बाद में,
ढूंढ लिए पापा ने सब में।

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