कविता हम जान बुझ कर फिसल गये July 12, 2009 / December 27, 2011 by कनिष्क कश्यप | Leave a Comment सभी मिट्टी के घरौंदे टूट गये हाथों से हाथ जब छुट गये तैरने लगे सपने बिखर के नैनों से जो सावन फ़ूट गये तरस गये शब नींद को तश्न्गी से लब तरश गये नाखुदा ने पुकार भी की कई अब्र फ़िर भी बरस गये सरगोशी से कुछ बात चली हम गिरते-गिरते संभल गये मुझे था […] Read more » Kanishka Kashyap Love Love Songs Poems