साहित्य मार्कण्डेय : जीवन के बदलते यथार्थ के संवेगों का साधक July 10, 2010 / December 23, 2011 by अरुण माहेश्वरी | Leave a Comment -अरुण माहेश्वरी ‘निर्मल वर्मा की कहानियों में लेखकीय कथनों की एक कतार लगी हुई है। जहां जरा-सा गर्मी-सर्दी लगी कि कमजोर बच्चों को छींक आने लगती है। यदि और सफाई से कहें, तो जैसे रह-रह कर बैलगाड़ी के पहिये की हाल उतर जाती है, ठीक वैसे ही, पात्र जरा-सा संवेदनात्मक संकट पड़ते ही खिड़की के […] Read more » Markandeya मार्कण्डेय