कविता मजदूर May 4, 2013 / May 4, 2013 by मंजुल भटनागर | 1 Comment on मजदूर मंजुल भटनागर मजदूर कहाँ ढूंढ़ता हैं छत अपने लिए वो तो बनाता है मकान धूप में तप्त हो कर उसकी शिराओ में बहता है हिन्दुस्तान —- मजदूर न होता तो क्या कभी बनता मुमताज़ के लिए ताज महल सी शान और चीन की दिवार आश्चर्य, कहाती सीना तान —— मजदूर ने खडे किये गुम्बद मह्ल […] Read more » poem by manjul bhatnagar