कविता कविता:अस्तित्व का खतरा-मोतीलाल June 1, 2012 / June 1, 2012 by मोतीलाल | Leave a Comment मै दरअसल हर चीज के प्रति दिल से उठती चीख की तरह हमेशा से किनारा करता गया इसलिए खुद ही अपनी दीवार को अस्तित्व के गहरे रहस्य मेँ ताजिँदगी उधेड़ता ही गया अभिसार और मिलन के दायरोँ से किसी एक तरफ बढ़ते हाथ वक्त के गुम्बद मेँ निरपेक्ष अस्तित्व का साया सुबह की रोशनी […] Read more » poem by motilal कविता:अस्तित्व का खतरा कविता:अस्तित्व का खतरा-मोतीलाल कविता:मोतीलाल
कविता कविता:अन्यथा शब्दोँ के लिए चिँता-मोतीलाल May 25, 2012 / May 25, 2012 by मोतीलाल | Leave a Comment जहाँ कहीँ भी होगा उठती अंतस से हूक अवसाद के चक्रवात मेँ रेखांकित नहीँ उसका वजूद गौर से यदि देखेँ मुखर होने की उनकी उपस्थिति है निश्चित ही हमसे करीब सभी समकालीन परिदृश्य चिँतन की किसी पद्धति मेँ अफसोसजनक नहीँ कि चीजेँ नहीँ वैसी जिन बुनियादोँ पर काटे जा रहे हैँ वनोँ को […] Read more » poem by motilal कविता-मोतीलाल कविता:अन्यथा शब्दोँ के लिए चिँता-मोतीलाल
कविता कविता – अगली सदी-मोतीलाल May 19, 2012 / May 19, 2012 by मोतीलाल | Leave a Comment बहुत संभव है चक्कियोँ के पाट से कोई लाल पगडंडी निकल आये और आँसूओँ के सागरोँ पर कोई बादल उमड़ता चला जाये गिरते पानी मेँ कदमोँ की आहट प्रायद्वीप बनने से रहे बहुत संभव है कोहनियोँ पे टिका जमीन पानी मेँ घुले ही नहीँ और बना ले प्रकृति की सबसे सुन्दर आकृति इन […] Read more » poem by motilal poem-agli sadi by motilal कविता - अगली सदी कविता - अगली सदी-मोतीलाल मोतीलाल
कविता कविता:अपने ही कमरे मेँ– मोतीलाल May 13, 2012 / May 13, 2012 by मोतीलाल | Leave a Comment एक विस्मृत जर्जर कमरे मेँ मै गिर जाता हूँ और गुजरता हूँ नम तंतुओँ के बीच से नष्ट हो चुकी चीजोँ के बीच जैसे मवेशियाँ चरते होँ अपने चारागाह मेँ मैँ इस तीखे माहौल मेँ मरणासन्न गंधोँ की लहरोँ के सामने महसूसता हूँ उन हरे पत्तोँ की सरसराहट जो अंधेरे बरामदोँ मेँ कहीँ किसी […] Read more » poem by motilal कविता:अपने ही कमरे मेँ
कविता कविता – चिँता या चेतना-मोतीलाल April 26, 2012 / April 26, 2012 by मोतीलाल | Leave a Comment मोतीलाल अपना कोई भी कदम नए रुपोँ के सामने कर्म और विचार के अंतराल मेँ अनुभव से उपजी हुई कोई मौलिक विवेचना नहीँ बन पाता है और विचार करने की फुर्सत मेँ ज्यादा बुनियादी ईलाज उपभोक्ताओँ की सक्रियता के बीच पुरानी चिँता बनकर रह जाती है शून्य जैसी हालात मेँ स्वीकृति के विस्तार को […] Read more » poem by motilal कविता- चिँता या चेतना-मोतीलाल