कविता अक्सर……………….!!! May 3, 2013 / May 3, 2013 by विजय कुमार सप्पाती | Leave a Comment अक्सर ज़िन्दगी की तन्हाईयो में जब पीछे मुड़कर देखता हूँ ; तो धुंध पर चलते हुए दो अजनबी से साये नज़र आते है .. एक तुम्हारा और दूसरा मेरा…..! पता नहीं क्यों एक अंधे मोड़ पर हम जुदा हो गए थे ; और मैं अब तलक उन गुमशुदा कदमो के निशान ढूंढ रहा हूँ. अपनी अजनबी ज़िन्दगी की जानी पहचानी राहो में ! कहीं […] Read more » poem by vijay kumar sappati