कविता तुम, मेरी देवी-विजय निकोर November 22, 2012 / November 22, 2012 by विजय निकोर | 2 Comments on तुम, मेरी देवी-विजय निकोर भोर की अप्रतिम ओस में धुली निर्मल, निष्पाप प्रभात की हँसी-सी खिलखिला उठती, कभी दुपहर की उष्मा ओढ़े फिर पीली शाम-सी सरकती तुम्हारी याद रात के अन्धेरे में घुल जाती है । निद्राविहीन पहरों का प्रतिसारण करती अपने सारे रंग मुझमें निचोड़ जाती है, और एक और भोर के आते ही कुंकुम किरणों का घूँघट […] Read more » poem by vijay nior तुम तुम मेरी देवी-विजय निकोर मेरी देवी-विजय निकोर
कविता एकान्त का सूनापन October 10, 2012 / October 10, 2012 by विजय निकोर | 2 Comments on एकान्त का सूनापन विजय निकोर ठिठुरता गहन सन्नाटा भीतर, अति निज कमरों का एकान्त अब और सुनसान – वर्ष पर वर्ष बीत जाते हैं पर जानें क्यूँ कोई दिन एक वत्सर हों जैसे, बीताते नहीं बीतते, कोई दिन क्यूँ नहीं बीतते ? सीलन लगी दीवार पर फफोले-से पलस्तर को कोई छीलता रहता हो जैसे एकान्त के सुनसान […] Read more » poem by vijay nior