कविता
सनातन संस्कार कभी बासी नहीं होते
/ by विनय कुमार'विनायक'
—विनय कुमार विनायकसनातन संस्कार कभी बासी नहीं होते,सदाचार छोड़के जीने वाले हमेशा रोते! लोग घूमते रोम, काबा, काशी मगर हो,इरादे नापाक तो कोई ना शाबाशी देते! दुश्मन तो जालिम होते हैं हमेशा से ही,अच्छा होता तुम ही खुद को बदल लेते! कब समझोगे कि आज,कल से निकलते,तुम्हारा अतीत वर्तमान सोचने नहीं देते! अबतक उपेक्षा भाव, […]
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