व्यंग्य जय हो बाजार की! October 26, 2012 / October 26, 2012 by अशोक गौतम | Leave a Comment डिस्काउंटों से भरे बाजारों , अखबारों में अखबारों से बड़े छपे विज्ञापनों को देख अब मुझे भीतर ही भीतर अहसास हो गया है कि हे राम ! तुम बनवास काट, घर के भेदी से लंका ढहवा अयोध्या की ओर लखन, सीता सहित कूच कर गए हो। और हम खालिस मध्यमवर्गीय तुम्हारे आने की खुषी में […] Read more » satire by Ashok Gautam
व्यंग्य व्यंग्य-तो कोतवाल जी कहिन-अशोक गौतम May 22, 2012 / May 22, 2012 by अशोक गौतम | Leave a Comment सरकार के घर तो दिन रात डाके पड़ते रहते हैं, कोर्इ पूछने वाला नहीं। कोर्इ सारा दिन दफतर की कुर्सी पर ऊंघने के बाद शाम को दफतर से चुन्नू को रफ काम के लिए सरकारी रजिस्टर बगल में दबाए, जेब में चार पैन डाले शान से घर आ रहा है तो कोर्इ घर के कर्टन […] Read more » satire by Ashok Gautam व्यंग्य-अशोक गौतम व्यंग्य-तो कोतवाल जी कहिन-अशोक गौतम
व्यंग्य कल्याण हो! April 20, 2012 / April 20, 2012 by अशोक गौतम | Leave a Comment अशोक गौतम सुबह सुबह बेड पर चारों खाने चित्त पसरी बीवी को बेड टी बना रात के झूठे बरतन धोने के बाद से टूटी हुई कमर को सीधा करने की कोशिश कर ही रहा था कि दरवाजे पर दस्तक हुई। सोचा, विलायती कुत्ते को लेकर घूमने जाने को कहने पड़ोसी आ गया होगा। जबसे रिटायर […] Read more » satire by Ashok Gautam
व्यंग्य थाने के बगल वाली भगतिन April 15, 2012 / April 15, 2012 by अशोक गौतम | Leave a Comment अशोक गौतम कल सुबह पड़ोसी बालकनी मे हंसता हुआ दिखा तो मेरा दम घुटने को हुआ। लगा, किसीने मेरे गले पर अंगूठा रखा दिया हो। आखिर जब मेरे से उसका और हंसना बर्दाष्त नहीं हुआ तो मैं उसके पास जा पहुंचा। उसकी ओर निरीह भाव से देख पूछा-बंधु! आज इस तरह से हंस रहे हो, […] Read more » satire by Ashok Gautam
व्यंग्य यत्र तत्र हाथी सर्वत्र! January 13, 2012 / January 13, 2012 by अशोक गौतम | Leave a Comment अशोक गौतम विपक्ष के आरोप पर चुनाव आयोग ने हर चौक पर विराजमान को ढकने के आदेश किए तो हाथियों के संगठन के प्रधान ने देश के तमाम हाथियों को संबोधित करते कहा,‘ हे मेरे देश के तमाम हाथियो! जरा चुनाव आयोग से पूछो कि हमारा चुनाव से क्या लेना देना! हम तो बस हाथी […] Read more » Elephant satire by Ashok Gautam हाथी
व्यंग्य ये गया कि वो गया!! January 3, 2012 / January 3, 2012 by अशोक गौतम | Leave a Comment सारी रात रजाई में दुबक टमाटर की आरती गाते रहने के बाद ब्रह्म मुहूर्त में प्याज चालीसा पढ़ रहा था कि एकाएक दरवाजे पर ठक्- ठक् हुई। पड़ोसी ही होगा! आ गया होगा नए साल की मुबारकबाद देने के बहाने खाली कटोरी बजाता। इसे तो बस मांगने का कोई बहाना चाहिए। प्याज चालीसा पढ़ना बंद […] Read more » satire by Ashok Gautam व्यंग्य-ये गया कि वो गया
व्यंग्य व्यंग्य/कुछ कहिए प्लीज!! September 10, 2009 / December 23, 2011 by अशोक गौतम | 2 Comments on व्यंग्य/कुछ कहिए प्लीज!! भाई जी, अब आप से छुपाना क्या! हम तो ठहरे जन्मजात दुर्बल! शादी से पहले और शादी के बाद बहुत कोशिश की कि दुर्बलता से छुटकारा मिले। पता नहीं कितने दावा करने वालों की गोलियां खाई, कभी बाप के पैसों की तो कभी ससुराल के पैसों की। अपने हाथों में और तो हर तरह की […] Read more » gव्यंग्य/कुछ कहिए प्लीजam!! satire by Ashok Gautam
व्यंग्य तीर ए नजर/ जा बेटा, कुर्सी तोड़!! April 14, 2009 / December 25, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment इस स्कूल मास्टरी की वजह से कई बार घरवाली से जूते खा चुका हूं। बच्चे मुझे अपना बाप समझने में शरम समझते हैं। और वह अपनी बगल वाला माल मकहमे का चपड़ासी! उसके बच्चे भरे मुंह उसे बाप!बाप! कहते मुंह का थूक सुखाए रहते हैं। इधर-उधर के बच्चे भी जब उसे बाप-बाप कहते उसके पीछे दौड़ते हैं तो उसकी पत्नी का सीना फुट भर फुदकता है। Read more » satire by Ashok Gautam व्यंग