व्यंग्य साहित्य अगड़ों मे अगड़े, पिछड़ों मे पिछड़े February 26, 2016 by बीनू भटनागर | 2 Comments on अगड़ों मे अगड़े, पिछड़ों मे पिछड़े आजकल जाति के आधार पर पिछड़ापन तय हो रहा है तो मैने सोचा अपनी जाति के अगड़े पिछड़े परकुछ रिसर्च करूँरिसर्च तो वैसे घर बैठे करने के लिये विकीडिया ही काफ़ी है पर किसी यूनिवर्सिटी से रि सर्च हो तो नाम के आगे डाक्टर का ठप्पा लगाना बड़ा अच्छा लगे गा।बड़ी पुरानी ख़वाहिश करवट ले रही है।रिसर्च के लियें आजकल सबसे अधिक चर्चित यूनीवर् सिटी तो जे.एन यू, ही और वहाँ ना उम्र की सीमा है, ना जन्म का है बंधन…….. और जे. एन यू. मे सोश्योलोजी मे शोध छात्रा बन जाऊं या ऐन्थोपौलोजी की , चाहें […] Read more » satire on reservation system
व्यंग्य साहित्य अगले जन्म मोहे “सामान्य” ना कीजो February 24, 2016 / February 29, 2016 by अमित शर्मा (CA) | Leave a Comment अपने देश में सामान्य वर्ग का होना उतनी ही सामान्य बात हैं जितनी की कांग्रेस सरकारों में भ्रष्टाचार का होना। लेकिन अगर सामान्यता में योग्यता का समावेश ना हो तो फिर ऐसी “अनारक्षित-असामान्यता” का देश में उतना ही मूल्य रह जाता हैं जैसे किसी मार्गदर्शक मंडल के नेता का किसी पार्टी में। सामान्य श्रेणी […] Read more » satire on reservation system