कविता व्यंग्य गिरगिट दादा-प्रभुदयाल श्रीवास्तव September 25, 2012 / September 25, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | 1 Comment on गिरगिट दादा-प्रभुदयाल श्रीवास्तव मिले सड़क पर गिरगिट दादा लगे मुझे दुख दर्द बताने| बहुत देर तक रुके रहे वे अपने मन की व्यथा सुनाने| बोले ‘सदियों सदियों से मैं सदा बदलता रंग रहा हूं| दीवालों आलों खिड़की में, इंसानों के संग रहा हूं| रंग बदलने के इस गुण में , जगवाले मुझसे पीछे थे| रंग बदलने […] Read more » satire poem by prabhudayal गिरगिट दादा