कविता
व्यर्थ ही चिन्ता किए क्यों जाते !
/ by गोपाल बघेल 'मधु'
(मधुगीति १९०८११ अकासा) व्यर्थ ही चिन्ता किए क्यों जाते, छोड़ क्यों उनके लिए ना देते; करने कुछ उनको क्यों नहीं देते, समर्पण करके क्यों न ख़ुश होते ! कहाँ हर प्राण सहज गति है रहा, जटिलता भरा विश्व विचरा किया; ज़रूरी उनसे योग उसका है, समर्पित उसको उन्हें करना है ! कार्य जो कर सको उसे कर लो, शेष सब उनके हवाले कर दो; उचित विधि उसको लिए जावेंगे, क्षीण संस्कार करा भेजेंगे ! किए रचना जगत में धाया करो, सोच ना विचित्रों को लाया करो; चित्र जो बन रहे बना लो तुम, इत्र उनको भी कुछ छिड़कने दो ! पाएँगे कर वे कुछ ज्यों छोड़ोगे, किसी रस और में वे बोरेंगे; ‘मधु’ कुछ छोड़ भी जगत देते, प्रभु औ प्रकृति द्युति लखे चलते ! ✍? गोपाल बघेल ‘मधु’
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