कहानी साहित्य काट औ छाँट जो रही जग में ! October 10, 2017 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment काट औ छाँट जो रही जग में, दाग बेदाग़ जो रहे मग में; बढ़ा सौन्दर्य वे रहे प्रकृति, रचे ब्रह्माण्ड गति औ व्याप्ति ! कष्ट पत्ती सही तो रंग बदली, लालिमा ले के लगी वह गहमी; गही महिमा ललाट लौ लहकी, किसी ने माधुरी वहाँ देखी ! सेब जो जंगलों में सेवा किये, […] Read more » काट औ छाँट