कविता कुछ भी निश्चित नहीं है August 23, 2013 by बीनू भटनागर | Leave a Comment चाँद तुम रोज़ क्यो मुस्कुराते हो ? तुम्हारा आसमान मे निकलना, खिलना कितना सुनिश्चित है। तुम्हे कभी कोई बादल भी ढकले, तो तुम उदास हो जाते हो […] Read more » कुछ भी निश्चित नहीं है