कविता कोयल की तेरी बोली February 10, 2021 / February 10, 2021 by विनय कुमार'विनायक' | Leave a Comment —विनय कुमार विनायकआज देखा ठूंठ पर बैठावृद्ध कोयल को बेतहाशा रोतेअपने बच्चों की नादानी परबच्चे जो कौवे के कोटर में पलकर बड़े होतेजो होश संभालते ही घर छोड़ देते!कोयल जिसे घर नहीं होताजो हर शाख, जर्रा-जर्रा को घर समझता!जाने कैसे कोयल के बच्चेलड़ पड़े घर के लिए!समझाया भी था उसने‘कोयल की संतानों/ खुद को पहचानो’कुछ […] Read more » कोयल की तेरी बोली