कविता गरम हलुवा July 2, 2014 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment -प्रभुदयाल श्रीवास्तव- लगा रहे अविरल परिकम्मा, हलुवा मुझे खिला दे अम्मा| राम शरण बोले ज्वर उन पर, पता नहीं क्यों चढ़ा निकम्मा| बोले रात एक सौ दो था, सुबह सुबह तक सौ आ पाया| इससे नीचे नहीं गया है, क्योंकि हलुवा नहीं खिलाया| हलुवा ज्वर नाशक होता है, कहते हैं सब जेठे स्याने| समय काल […] Read more » कविता गरम हलुवा