कविता “गुलाब भरा आँगन” May 19, 2013 by प्रवीण गुगनानी | Leave a Comment सहजता सिमटता हवा का झोंका सहज होनें का करता था भरपूर प्रयास. बांवरा सा हवा का वह झोंका गुलाबों भरे आँगन से चुरा लेता था बहुत सी गंध और उसे तान लेता था स्वयं पर. गुलाब वहां ठिठक जाते थे हवा के ऐसे अजब से स्पर्श से किन्तु हो जाते थे कितनें ही विनम्र मर्म […] Read more » “गुलाब भरा आँगन”