कविता तौहिनी लगाती है-कविता September 12, 2014 / September 12, 2014 by डॉ नन्द लाल भारती | Leave a Comment डॉ नन्द लाल भारती बोध के समंदर से जब तक था दूर सच लगता था सारा जहां अपना ही है बोध समंदर में डुबकी क्या लगी सारा भ्रम टूट गया पता चला पांव पसारने की इजाजत नहीं आदमी होकर आदमी नहीं क्योंकि जातिवाद के शिकंजे में कसा कटीली चहरदीवारी के पार झांकने तक की इजाजत […] Read more » कविता तौहिनी लगाती है