कविता माँझी February 26, 2024 / February 26, 2024 by श्लोक कुमार | Leave a Comment ले चल कश्तीबान उस पारहै दरिया एक आधारसमंदर की तरंगे रहे पुकारले चल कश्तीबान उस पारबीच समंदर में लगता त्रास बार-बारखेता चल कश्ती मेरे यारबारिश की बूंदे रहे पुकारचंचला बुला रही शैतानले चल कश्तीबान उस पारतम बनता जा रहा मेरे आखिर का आधारकश्ती की शिकस्त रूप, बताता उसकी कैफियतदेख समंदर का नैराश्य, करता कश्ती का […] Read more » माँझी