कविता मां गुमसुम सी सोचती कहूं किसको? January 19, 2021 / January 19, 2021 by विनय कुमार'विनायक' | Leave a Comment —विनय कुमार विनायकमानव जीवन में झमेले ही झमेले,छठी से अर्थी तक पीड़ा ही झेलते! सबका साथ रिश्तों का रेलम-पेला,यहां दुःख भोगे सब कोई अकेला! दुःख के दिन, अंगद पांव के जैसे,टस से मस की गुंजाइश ना होते! दर्द आवारा आशिक देखे ना दिन,झोपड़ी से महल तक दबोच लेते! सुख नेवला आए,दुःख सांप दुबके,फिर डंसने को […] Read more » मां गुमसुम सी सोचती कहूं किसको?