कविता
मां तुम कितना कुछ सहती हो
/ by विनय कुमार'विनायक'
—विनय कुमार विनायकमां तुम कितना कुछसहती हो,फिरभी तुमकुछनाकहती हो,खाना हम सबको खिलाने तक,तुम मांदिनभर भूखी रहती हो! इस जहां में कहांकोईरचना,जो तेरे जैसेभूख-प्यास, नींदऔर ढेर सारी पीड़ा सहती हो,फिर भी कुछ नहीं कहती हो! मां तुम कितनीभोलीसी हो,दुनिया मेंअमृतरस घोली हो,अपनेबच्चों की आपदाओंकोअपने हीसरपर ले लेती हो! मां नहीं तो जग कैसाहोता?जीव जंतुओं सेयेसूना होता,हर […]
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