कविता मन का मेला May 28, 2018 by शकुन्तला बहादुर | Leave a Comment मेरे अतीत के आँगन में है,अनगिन सुधियों का मेला । कहाँ कहाँ ये जीवन बीता , कहाँ कहाँ ये है खेला ।। * रंग-बिरंगी लगीं दुकानें , तरह तरह के हैं झूले । उन सब में भटका सा ये मन,अपना सब कुछ भूले ।। * झूले के घोड़े पर बैठा , ये मन सरपट […] Read more » आँगन में कहीं ठहर जाता मेरे अतीत मेले में बिछड़े