दोहे साहित्य
रीति बहुत विपरीत
/ by श्यामल सुमन
जीवन में नित सीखते, नव-जीवन की बात। प्रेम कलह के द्वंद में, समय कटे दिन रात।। चूल्हा-चौका सँग में, और हजारो काम। डरते हैं पतिदेव भी, शायद उम्र तमाम।। झाड़ू, कलछू, बेलना, आलू और कटार। सहयोगी नित काज में, और कभी हथियार।। जो ज्ञानी व्यवहार में, करते बाहर प्रीत। घर में अभिनय […]
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