रीति बहुत विपरीत

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womenजीवन में नित सीखते, नव-जीवन की बात।

प्रेम कलह के द्वंद में, समय कटे दिन रात।।

 

चूल्हा-चौका सँग में, और हजारो काम।

डरते हैं पतिदेव भी, शायद उम्र तमाम।।

 

झाड़ू, कलछू, बेलना, आलू और कटार।

सहयोगी नित काज में, और कभी हथियार।।

 

जो ज्ञानी व्यवहार में, करते बाहर प्रीत।

घर में अभिनय प्रीत के, रीति बहुत विपरीत।।

 

मेहनत बाहर में पति, देख थके घर-काज।

क्या करते, कैसे कहें, सुमन आँख में लाज।।

 

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