दोहे
शिव सरिस नृत्य करत रहत, निर्भय योगी !
/ by गोपाल बघेल 'मधु'
शिव सरिस नृत्य करत रहत, निर्भय योगी; सद्-विप्र सहज जगत फुरत, पल पल भोगी ! भव प्रीति लखत नयन मेलि, मर्मर सुर फुर; प्राणन की बेलि प्रणति ढ़ालि, भाव वाण त्वर ! तारक कृपाण कर फुहारि, ताण्डव करवत; गल मुण्ड माल व्याघ्र खाल, नागमणि लसत ! ज्वाला के जाल सर्प राज, शहमत रहवत; गति त्रिशूलन […]
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