कविता सम्प्रेषण और भंगिमाएं December 10, 2012 / December 10, 2012 by प्रवीण गुगनानी | Leave a Comment सम्प्रेषण और भंगिमाएं दोनों की सीमाओं पर सतत निरंतर आँखों का सदा ही बना रहना और पता चल जानें से लेकर प्रकट हो जानें तक की सभी चर्चाओं पर सदा बना रहता है सूर्य. सूर्य के प्रकाश में भावों को भंगिमाओं में बदलनें की ऊर्जा मिलती तो है किन्तु परिवर्तन के इस प्रवाह में सम्प्रेषण […] Read more » . सम्प्रेषण और भंगिमाएं