कविता हो गया है विहान री December 28, 2013 / December 28, 2013 by बीनू भटनागर | 6 Comments on हो गया है विहान री 1. हो गया है विहान री सखि,हो गया है अब विहान री, तू नींद छोड़ कर जाग री। पंछियों का कलरव गूंज रहा, सूरज देहरी को पूज रहा। तू अब तक सोई है री सखि, आंखों में लिये ख़ुमार री। चल उठ पनघट तक जाना है, दो चार घड़े जल लाना है, मै छाछ कलेवा बनालूं […] Read more » poem कविता हो गया है विहान री