कविता ख़ामोशी का मंज़र January 2, 2015 by लक्ष्मी जायसवाल | Leave a Comment दिल में उठी अजीब सी हलचल है क्या इस बेचैनी का कोई हल है नादाँ इस दिल में तूफ़ान उठते हैं पलकों के नीचे अब सपने सजते हैं। सपनों और पलकों के बीच न जाने कितना ज्यादा फासला है जो अब भी सपने हमारी पलकों से दूर रहते हैं। दिल में बातें बहुत हैं […] Read more » ख़ामोशी का मंज़र