
अब कहाँ बोली जाती है,
लोगों में रसीली बोलियाँ
जहाँ देखों वहीं मिलती है,
लोगों में बनावटी बोलियाँ ।
भले प्रेमियों की आँखों में बँसी हो,
प्रेमसनी अनकही बोलियाँ
भले नाते-रिश्तों में घुली हुई हो,
मिश्री सी मीठी बोलियाँ।
बिखरे से है सभी साबुत लोग,
बोलते है आपस में अटपटी बोलियाँ।
व्हाटसअप’-फेसबुक के हजारों मित्र ,
खुद महारथी बन, बोलते है तर्क-कुतर्क की बोलियाँ।
इलेक्टानिक मीड़िया के समाचारवाचक भी
रात-दिन बोलते है, संभावित खबरों की बोलियाँ।
’’पीव’’ यहाँ है सबकी अपनी’ अपनी बोलियाँ।
चाद-तारे, धरा आकाश में, अनहद गूंजती है बोलियाँ
दिन-रात, सुबह शाम रूनझुन की है सुरीली बोलियाँ।
दिल की तनहाई में, आँखों की गहराई में
नशीली है, सुरीली है, खटटी है मीठी है, सारी बोलियाँ।
सच्चे थे,अच्छे थे,मिलजुल कर सब रहते थे
इंसानियत थी,इंसान थे,तब बोली जाती थी सच्ची बोलियाँ।
’’पीव’’ भूले है, बिसरे है,हम जाकर जहाँ ठहरे हैं
कीर्ति और धन का नशा,राजबल से छल का नशा
छोड़कर इंसान बनो,बोलिये तब प्यारी प्यारी बोलियाँ।