ज्ञान चंद पाटनी
स्वदेशी लड़ाकू विमान तेजस के दुबई एयर शो में दुर्घटनाग्रस्त होने से रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की तरफ बढ़ रहे भारत का आत्मविश्वास कम नहीं होने वाला। यह हादसा 21 नवंबर 2025 को तब हुआ जब तेजस लड़ाकू विमान एक डेमो प्रदर्शन के दौरान अचानक नियंत्रण खो बैठा और जमीन पर टकरा गया, जिससे विंग कमांडर नमांश स्याल का निधन हो गया।
तेजस विमान को हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) ने विकसित किया है जो देश की स्वदेशी सैन्य उत्पादन क्षमता का प्रतीक माना जाता है। एक दशक के परीक्षण के बाद यह विमान भारतीय वायुसेना में शामिल हुआ और इसे हल्का लड़ाकू विमान कहा जाता है। कार्बन फाइबर के ढांचे के कारण कम वजन और उच्च मजबूती इसकी विशेषता है। साथ ही इसका सेंसर तरंग रडार दुश्मन के विमानों और मिसाइल से सुरक्षा में मदद करता है।
इस दुर्घटना से पहले मार्च 2024 में राजस्थान के जैसलमेर में भी एक तेजस विमान दुर्घटनाग्रस्त हुआ था जिसकी वजह इंजन की खराबी माना जा रहा है। भारतीय वायुसेना ने दुबई दुर्घटना की जांच के लिए कोर्ट ऑफ इंक्वायरी का गठन कर दिया है। जांच के बाद ही हादसे के सही कारण का पता चलेगा लेकिन यह तो मानकर चलना चाहिए कि तेजस की यह दुर्घटना रक्षा निर्यात के लिए झटका जरूर है, लेकिन इससे भारत का संकल्प कमजोर नहीं पड़ने वाला। यह विमान अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपनी पकड़ मजबूत बना रहा था, खासकर मिस्र, आर्मेनिया और दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों में। दुबई एयर शो जैसे अंतरराष्ट्रीय आयोजन में हुई ऐसी दुर्घटना का सीधा असर रक्षा मामले में भारत की आत्मनिर्भरता के साथ रक्षा निर्यात पर पड़ने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। इसके बावजूद भारत का इतिहास इस बात का साक्षी है कि वह अपने लक्ष्य में आने वाली सभी बाधाओं को दूर करने में सक्षम है।
भारत सरकार ने रक्षा क्षेत्र में अनेक महत्वपूर्ण नीतिगत सुधार किए हैं जिनका परिणाम सामने भी आया है। भारत का रक्षा उत्पादन वित्त वर्ष 2024-25 में 1.54 लाख करोड़ रुपए दर्ज किया गया है। आत्मनिर्भर भारत की नीति के तहत यह रक्षा उत्पादन वृद्धि देश की रक्षा क्षमता और आर्थिक विकास दोनों के लिए उत्साहवर्धक है। भारत न केवल स्वदेशी रक्षा उत्पादन बढ़ा रहा है बल्कि वैश्विक रक्षा बाजार में अपनी स्थिति भी मजबूत कर रहा है। भारत आज अमेरिका, फ्रांस और आर्मेनिया सहित 100 से अधिक देशों को रक्षा उपकरणों का निर्यात करता है।
तेजस की किफायती कीमत, तकनीक साझा करने की नीति और उन्नत हथियारों से लैस क्षमता इसे भारतीय वायु वाहन बेड़े के लिए मजबूत विकल्प बनाती है। भारत ने 2029 तक 50,000 करोड़ रुपए के रक्षा निर्यात का लक्ष्य रखा है जिसमें तेजस विमान का निर्यात भी प्रमुख है। दुर्घटना का प्रभाव आर्थिक और कूटनीतिक रूप में गहरा हो सकता है। फिर वैश्विक रक्षा उद्योग में कड़ी प्रतिस्पर्धा है। इसलिए गुणवत्ता, विश्वसनीयता और निरंतर सुधार आवश्यक हैं। इस हादसे को भारत में रक्षा उत्पादन की मजबूती के लिए एक चेतावनी और सीख के रूप में लिया जाना चाहिए। स्वदेशी विमानों के निर्माण, रखरखाव — प्रशिक्षण में निरंतर निगरानी और सुधार आवश्यक है। एचएएल, डीआरडीओ, वायुसेना और रक्षा मंत्रालय को इस घटना से सबक लेकर तेजस के भविष्य को सुरक्षित करना होगा।
भारत को गुणवत्ता नियंत्रण और निरंतर नवाचार के जरिए विश्व स्तर पर अपनी रक्षा ताकत को स्थापित करना होगा। तेजस कार्यक्रम की शुरुआत 1980 के दशक में इस संकल्प के साथ हुई थी कि भारत अपनी जरूरतों के अनुरूप, पूरी तरह स्वदेशी हल्का लड़ाकू विमान विकसित करेगा। प्रोटोटाइप ने 2001 में पहली उड़ान भरी और तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इसे “तेजस” नाम दिया। प्रतीकात्मक उपलब्धियों के बावजूद, इसे भारतीय वायुसेना की नियमित स्क्वाड्रनों में आने में और 14 वर्ष लग गए। इतने लंबे अंतराल ने साफ कर दिया कि महत्वाकांक्षा और तकनीकी क्षमता के बीच बहुत बड़ा फासला था।
भारतीय वायु सेना में तेजस लड़ाकू विमान 2016 में शामिल हुआ था। 2025 के अक्टूबर में भारतीय वायु सेना को पहला तेजस एमके 1ए मॉडल सौंपा गया जो एमके 1 का उन्नत संस्करण है। आज की तारीख में तेजस के मात्र दो ऑपरेशनल स्क्वाड्रन भारतीय वायुसेना में हैं जिनमें कुल 38 विमान शामिल हैं। इसके बावजूद, पूरे बेड़े के आधुनिकीकरण की योजना इसी पर टिकी हुई है। पुराने हो चुके मिग-21 बेड़े के रिटायर होने के बाद तेजस से उम्मीद की गई कि वह इन स्क्वाड्रनों की जगह लेगा और वायुसेना की ऑपरेशनल ताकत को संभाले रखेगा। सरकार ने तेजस एमके 1 के 180 से अधिक विमानों का ऑर्डर दे दिया है और भविष्य में तेजस एमके2 को भी शामिल करने का रोडमैप बनाया गया है। समस्या यह है कि योजनाएं तेजी से कागज पर आगे बढ़ती गईं, जबकि उत्पादन और डिलीवरी की गति बहुत पीछे रह जाती है। यही वजह है कि 42 स्क्वाड्रन की स्वीकृत ताकत के मुकाबले वायुसेना आज 30 से भी कम स्क्वाड्रन पर सिमट गई है और आने वाले वर्षों में मिग‑29, जगुआर और मिराज‑2000 जैसे पुराने विमानों के रिटायर होने से यह कमी और बढ़ेगी। ऐसे समय में तेजस का हर विमान सिर्फ एक तकनीकी प्रोजेक्ट नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा की जरूरत भी है। उड़ान क्षमता, हथियार लोड और ऑपरेशनल रेंज के मामले में तेजस विदेशी विमानों जैसे एफ-16 और ग्रिपेन से कुछ मामलों में पिछड़ता दिखता है। इसके बावजूद तेजस भारतीय वायु सेना की भविष्य की ताकत बनने की राह पर है, क्योंकि इसकी क्षमता में लगातार सुधार हो रहा है।
तेजस लड़ाकू विमान का एक कमजोर पक्ष यह है कि इसके लिए इस्तेमाल होने वाले इंजन मुख्य रूप से अमेरिका से आयातित हैं। तेजस विमान के लिए स्वदेशी इंजन विकास के प्रयास किए गए थे, वे विफल हो गए। इसके कारण भारत को आयातित इंजनों पर निर्भर रहना पड़ रहा है। यह निर्भरता कई बार उत्पादन में देरी का कारण बनती है। जाहिर है इससे तेजस कार्यक्रम की स्वदेशी और आत्मनिर्भरता की छवि भी प्रभावित होती है। इंजनों की खरीद में बड़ी राशि खर्च होती है और सीमित साझेदारी तकनीकी हस्तांतरण भी एक बड़ी चुनौती है। तेजस कार्यक्रम में स्वदेशी इंजन की कमी भारत की रक्षा स्वावलंबन की राह में एक बड़ी बाधा हैं। यह न केवल उत्पादन की गति को प्रभावित करता है बल्कि युद्धकालीन आवश्यकताओं में भी अनिश्चितताओं को बढ़ाता है। इसी वजह से भारत इस पर तीव्र ध्यान दे रहा है कि भारत में अधिक सक्षम, विश्वसनीय और स्वदेशी इंजन विकसित किए जाएं, ताकि भविष्य में आयात पर निर्भरता कम हो सके।
यह सही है कि इंजन के आयात के कारण तेजस कार्यक्रम की स्वदेशी छवि कुछ हद तक प्रभावित होती है लेकिन यह विमान अपनी तकनीकी क्षमताओं के आधार पर भारतीय वायुसेना में और निर्यात बाजारों में अपनी जगह बनाने में सक्षम है। अब तक कम दुर्घटना दर को तेजस के पक्ष में बड़ी दलील के तौर पर पेश किया जाता रहा है। यह तर्क अब भी कुछ हद तक सही है क्योंकि किसी भी जेट फाइटर के जीवनकाल में कुछ दुर्घटनाएं “ऑपरेशनल रिस्क” मानी जाती हैं। फिर भी, जब कोई विमान अंतरराष्ट्रीय मंच पर, लाइव डेमो के दौरान क्रैश होता है तो सवाल सिर्फ टेक्निकल नहीं रहते; वे भरोसे, छवि और गुणवत्ता से भी जुड़ जाते हैं।
हादसे का कारण पायलट फैक्टर है या जी‑फोर्स ब्लैक‑आउट, तकनीकी गड़बड़ी है या कोई दूसरी वजह, इसका जवाब जो केवल विस्तृत जांच रिपोर्ट ही दे सकती है। इस बीच जो जरूरी है, वह है खुला संवाद। वायुसेना, एचएएल और रक्षा मंत्रालय तीनों को मिलकर यह साफ संदेश देना होगा कि हादसे की निष्पक्ष जांच के बाद कमियों को दूर किया जाएगा, ताकि तेजस की क्षमता पर कोई सवाल नहीं उठा सके।
ज्ञान चंद पाटनी