सच बतलाना

नहीं कहानी भूतों वाली कहना अम्मा,

ना ही परियों वाला कोई गीत सुनाना|

क्या सचमुच ही चंदा पर रहती है बुढ़िया,

इस बारे में मुझको बिल्कुल सच बतलाना|

 

कहते हैं सब चंदा पर अब ,

इंसानों के पैर पड़ चुके|

वायुयान ले धरती वाले,

चंदा पर दो बार चढ़ चुके|

चंद्र ग्रहण पर उसको केतु डस लेता है,

यह बातें तो सच में लगतीं हैं बचकाना|

 

राहु पर भी तो सूरज को,

डसने के आरोप लगे हैं|

सोलह घोड़ों के रथ वाले,

सूरज भी क्या डरे हुये हैं|

दुनियां वाले ढूंढ़ ढूंढ़ राहू को हारे,

लेकिन अब तक नहीं मिला है पता ठिकाना|

 

घर से बाहर कदम रखे गर,

छींक कभी भी आ जाती है|

अशुभ मानकर अम्मा तब क्यों,

बाहर जाना रुकवाती है|

क्या सच में ही छींक हुआ करती दुखदाई,

किसी वैद्य से मिलकर पक्का पता लगाना|

 

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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