कविता

सच बतलाना

नहीं कहानी भूतों वाली कहना अम्मा,

ना ही परियों वाला कोई गीत सुनाना|

क्या सचमुच ही चंदा पर रहती है बुढ़िया,

इस बारे में मुझको बिल्कुल सच बतलाना|

 

कहते हैं सब चंदा पर अब ,

इंसानों के पैर पड़ चुके|

वायुयान ले धरती वाले,

चंदा पर दो बार चढ़ चुके|

चंद्र ग्रहण पर उसको केतु डस लेता है,

यह बातें तो सच में लगतीं हैं बचकाना|

 

राहु पर भी तो सूरज को,

डसने के आरोप लगे हैं|

सोलह घोड़ों के रथ वाले,

सूरज भी क्या डरे हुये हैं|

दुनियां वाले ढूंढ़ ढूंढ़ राहू को हारे,

लेकिन अब तक नहीं मिला है पता ठिकाना|

 

घर से बाहर कदम रखे गर,

छींक कभी भी आ जाती है|

अशुभ मानकर अम्मा तब क्यों,

बाहर जाना रुकवाती है|

क्या सच में ही छींक हुआ करती दुखदाई,

किसी वैद्य से मिलकर पक्का पता लगाना|