कड़क ठंड है

कितनी ज्यादा कड़क ठंड है

करते सी-सी पापा,

दादा कहते शीत लहर है

कैसे कटे बुढ़ापा।

 

बरफ पड़ेगी मम्मी कहतीं

ओढ़ रजाई सोओ,

किसी बात की जिद मत करना

अब बिलकुल न रोओ।

 

किंतु घंटे दो घंटे में

पापा चाय मंगाते

बार बार मम्मीजी को ही,

बिस्तर से उठवाते।

 

दादा कहते गरम पकोड़े

खाने का मन होता,

नाम पकोड़ों का सुनकर

किस तरह भला मैं सोता।

 

दादी कहती पैर दुख रहे

बेटा पैर दबाओ,

हाथ दबाकर मुन्ने राजा

ढेर आशीषें पाओ।

 

शायद बने पकोड़े आगे

मन में गणित लगाता,

दादी के हाथों पैरों को

हँसकर खूब दबाता।

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लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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