राजनीति

‘थैंक गॉड’ कम से कम एक सांसद तो पियक्कड़ नहीं है!

deewaliअभी हाल में हुई प्रभात झा और विजय माल्या प्रकरण ने हमारे देश के गणमान्य सांसदों की पोल खोल दी है। अभी तक तो जनता इस बात से पूरी तरह बेखबर ही थी कि जनता की नुमाइंदी करने का ढोंग रचने वाले सांसदों को कैसे-कैसे गिफ्ट मिलते हैं। इस प्रकरण के बात जनता की नाम पर अपनी राजनीति चमकाने वाले सांसदों को मिलने वाले गिफ्ट को लेकर उन्हें चुनकर भेजने वाली जनता अपने सांसदों को मिलने वाले गिफ्ट के बारे में थोड़ा-बहुत अनुमान लगा सकती है। अभी तक तो जनता इस बात से भी बेखबर थी कि उनके सांसद शराब के भी दीवाने हैं। पहले तो धन्यवाद प्रभात झा का, क्योंकि उन्होंने विजय माल्या के गिफ्ट के मामले को सार्वजनिक करके एक जोखिम भरा काम किया है। जोखिम भरा इसलिए कि उनकी पार्टी के सांसदों ने भी गिफ्ट को अपने पास रखने का लोभ संवरण नहीं किया।

यह लेख हिमांशु शेखर जी ने विशेष रुप से प्रवक्ता के लिये लिखा है, संपादक को अपेक्षा है कि इस लेख पर एक स्वस्थ बहस हो जो देश की भटकी राजनीति को एक दिशा दे सके…

यहां यह बताना जरूरी हो जाता है कि आखिर विजय माल्या ने किया क्या है? विजय माल्या भुतपूर्व राज्य सभा सांसद हैं। वे बड़े कारोबारी हैं। कई क्षेत्रों में उनका कारोबार फैला हुआ है। वे एक शराब बनाने वाली कंपनी के मालिक भी हैं। यानी वे भुतपूर्व सांसद भी हैं और शराब भी बनाते हैं। इन्हीं दोनों भूमिकाओं को उन्होंने इस बार मिला दिया है। उन्होंने सभी सांसदों को दीपावली गिफ्ट भेजा है। इस गिफ्ट में उनकी कंपनी में बनाए जाने वाली शराब की एक पेटी भी है।

विजय माल्या के बारे में बहुत कुछ कहना ठीक नहीं है। इस देश की जनता उनके बारे में बहुत कुछ जानती है। खूबसूरत मॉडलों के साथ उनकी तस्वीर आसानी से पत्र-पत्रिकाओं और चैनलों पर दिख जाती है। शराब से उनके लगाव पर कुछ कहना भी ठीक नहीं है। क्योंकि ये पब्लिक है, ये सब जानती है। सवाल तो सांसदों पर उठना चाहिए। सांसद जनता की नुमाइंदगी के लिए बनाया जाता है और उसे जनता के काम के लिए तमाम तरह की सुविधाएं दी जाती हैं। इसलिए बातचीत इन्हीं सांसदों के आचरण पर होनी चाहिए।

राजनीति के बदले चरित्र को लेकर देश में एक आम सहमति है। सहमति यह है कि राजनीति गंदी हो गई है और राजनीतिज्ञ घोटालेबाज का पर्याय बन गया है। यानी अगर किसी भी मामले में सियासी दखल हो तो एक आम धारणा यह बनती है कि उस काम का बेड़ा गर्क होना तय है। पर ये राजनीति है और इसके बगैर जीवन का चलना मुश्किल है। अगर राजनीति इस कदर गंदी हो गई है कि यहां पियक्कड़ और घपलेबाज ही टिक सकते हैं तो इसकी सफाई का बंदोबस्त होना चाहिए न कि इस स्थिति को ही आखिरी स्थिति मानकर बैठ जाना चाहिए।

बहरहाल, इस घटना के कई पक्ष हैं। सवाल तो यह भी है कि आखिर शराब दीपावली गिफ्ट कैसे बन गया। दीपावली में तो अपने यहां मिठाई और वैसी चीजों को एक-दूसरे को देने का चलन रहा है जो जिंदगी में मिठास घोलती हों और अपनापे का बोध कराती हों। कहना न होगा कि शराब तो कम से कम किसी की जिंदगी में मिठास घोलने से रहा। दरअसल, शराब का दिवाली गिफ्ट बन जाना एक परंपरा का खत्म हो जाना है। एक ऐसी परंपरा का खत्म हो जाना जिसे विजय माल्या जैसे लोग खत्म करना चाहते हैं। विजय माल्या जैसी भूमंडलीकरण के पैरोकार लोग भारत को अमेरिका का कार्बन कॉपी बनाना चाहते हैं और इसके लिए भारतीय संस्कृति और भारतीय परंपराओं को नष्ट करना जरूरी है। ये ऐसा ही कर रहे हैं। दुख तो इस बात का है कि जनता की नुमाइंदगी करने का राग अलापने वाले सांसद भी उनके इस मकसद को कामयाब करने के लिए उनका साथ दे रहे हैं।

सवाल तो यह भी है कि क्या सांसद गिफ्ट में शराब पहले से ले रहे हैं? क्या देश के सांसद शराब के अलावा और भी बहुत कुछ गिफ्ट में लेते हैं? क्या वैसी चीजें भी जिन्हें विजय माल्या जैसे लोग जिंदगी का रंग मानते हैं? (आप समझदार हैं, इशारा समझ जाइए) इस प्रकरण के बाद तो ज्यादातर लोग इन सवालों का जवाब हां में ही देंगे। अगर ऐसा है तो 2 अक्टूबर को ये नेता गांधी जयंती के मौके पर शराबबंदी पर लंबे-चौड़े भाषण आखिर क्यों दे रहे थे? जाहिर है कि इनके कथनी और करनी के बीच का अंतर काफी बढ़ गया है।

ये कहते कुछ और हैं और करते कुछ और हैं। गांधी जयंती के मौके पर शराबबंदी के पक्ष में भाषण देना और विजय माल्या से शराब की पेटी गिफ्ट के तौर पर लेना सांसदों के दोहरे चरित्र को उजागर करता है और यह गांधी जी की आत्मा के साथ एक बहुत बड़ा छल भी है। बड़ा सवाल यह है कि आखिर कब तक लोग इन दोहरे चरित्र वालों को अपना नुमाइंदा बनाते रहेंगे? इस दीपावली पर लोगों को इन नेताओं से लोकतंत्र को मुक्त कराने का संकल्प लेना चाहिए। वैसे भी घर के बड़े-बुजुर्ग यह कहते आए हैं कि इस पर्व मे जलाए जाने वाले दीपक में सारे कीड़े-मकोड़े जल जाते हैं।